जगद्गुरु रामभद्राचार्य (संस्कृत: जगद्गुरुरामभद्राचार्यः) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम गिरिधर मिश्र चित्रकूट (उत्तर प्रदेश, भारत)क रहनिहार एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक आ हिन्दू धर्मगुरु छी।[]रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चारि जगद्गुरु रामानन्दाचार्यसभमे सँ एक छी आ ई पद पर १९८८ ई सँ प्रतिष्ठित अछि।[][][] ओ चित्रकूटमे स्थित सन्त तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक आ सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक आ अध्यक्ष छी।[] ओ चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय के संस्थापक आ आजीवन कुलाधिपति अछि।[][] ई विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलाङ्ग विद्यार्थीसभक स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आ डिग्री प्रदान करैत अछि। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दुई महिनाक आयुमे नेत्रक ज्योतिसँ रहित भऽ गेल छल आ तखनसँ प्रज्ञाचक्षु अछि।[][][१०][११]

रामभद्राचार्य
Jagadguru Rambhadracharya
जगद्गुरुरामभद्राचार्यः
जगद्गुरु रामभद्राचार्य
जगदगुरु रामभद्राचार्य २५ अक्टूबर २००९ मे मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत मे एक उपदेश दैत्।
जन्मगिरिधर मिश्र
(१९५०-०१-१४) १४ जनवरी १९५० (उमर ७४)
शङ्दिखुर्द, जोनपुर जिला, उत्तर प्रदेश, भारत
खोजकर्ता छी
Sect associatedरमानन्दी सेक्टर
गुरू
  • इश्वरदास (मन्त्र)
  • रामप्रसाद त्रिपाठी (संस्कृत)
  • रामचरणदास (सम्प्रदाय)
दर्शनविशिष्टाद्वैत वेदान्त
साहित्यिक काजसभश्रीराघवकृपाभाष्यम प्रस्थानत्रयी मे, श्रीभार्गवराघवीयम्, भृङ्गदूतम्, गीतरामायणम्, श्रीसिटारामसुप्रभातम, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, अष्टावक्र, आ अन्य
Prominent Disciple(s)अभिराज राजेन्द्र मिश्र, प्रेम भूषण,[] नित्यानन्दमिश्रः[]
हस्ताक्षरThumb impression of Rambhadracharya
हिन्दी उच्चारण:रामभद्राचार्य

अध्ययन वा रचना के लेल ओ कखनो सेहो ब्रेल लिपिक प्रयोग नै कएल अछि। ओ बहुभाषाविद् अछि आ २२ भाषासभ बोलैत अछि।[१०][१२][१३]संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित अनेकौं भाषासभमे आशुकवि आ रचनाकार छी। ओ ८० सँ अधिक पुस्तकसभ आ ग्रन्थसभक रचना केनए अछि, जाहिमे चारिटा महाकाव्य (दुईटा संस्कृत आ दुईटा हिन्दी मे), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका आ प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता आ प्रधान उपनिषदसभ) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित अछि।[१४] हुनका तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञसभमे गिनल जाइत अछि,[११][१५][१६] आओर ओ रामचरितमानसक एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक अछि, जेकर प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा कएल गेल अछि।[१७] स्वामी रामभद्राचार्य रामायणभागवत के प्रसिद्ध कथाकार छी – भारत के भिन्न-भिन्न नगरसभमे आ विदेशसभमे सेहो नियमित रूपसँ हुनकर कथा आयोजित होइत रहैत अछि आ कथा के कार्यक्रम संस्कार टिभी, सनातन टिभी इत्यादि च्यानलसभ पर प्रसारित सेहो होइत अछि।[१८][१९][२०][२१][२२][२३]

२०१५ मे भारत सरकार हुनका पद्मविभूषण सँ सम्मानित केलक।

जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन

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माता शची देवी आ पिता पण्डित राजदेव मिश्र के पुत्र जगद्गुरु रामभद्राचार्यक जन्म एक वसिष्ठगोत्रिय सरयूपारीण ब्राह्मण परिवारमे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जोनपुर जिल्लाक शान्डिखुर्द नामक ग्राममे भेल। माघ कृष्ण एकादशी विक्रम सम्वत २००६ (तदनुसार १४ जनवरी १९५० ई), मकर सङ्क्रान्तिक तिथि के राति के १०:३४ बजे बालकक प्रसव भेल। हुनकर पितामह पण्डित सूर्यबली मिश्रक एक चचेरा बहन मीरा बाईक भक्त छल आ मीरा बाई अपन काव्यसभमे श्रीकृष्ण के गिरिधर नाम सम्बोधित करैत छल, अतः ओ नवजात बालक के गिरिधर नाम देल गेल।[१०][२४]

दृष्टि बाधन

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गिरिधरक नेत्रदृष्टि दुई महिनाक अल्पायुमे नष्ट भऽ गेल। मार्च २४, १९५० के दिन बालकक आँखिमे रोहे भऽ गेल। गाममे आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध नै छल। बालक के एक वृद्ध महिला चिकित्सक के पास लऽ जाएल गेल जे रोहेक चिकित्सा के लेल जानल जाइत छल। चिकित्सक गिरिधरक आँखिमे रोहेक दुनु के फोडि के लेल गरम द्रव्य देलक, मुद्दा रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दुनु नेत्रसभक ज्योति चलि गेल।[२५] आँखि के चिकित्सा के लेल बालकक परिवार हुनका सीतापुर, लखनऊमुम्बई स्थित विभिन्न आयुर्वेद, होमियोपैथीपश्चिमी चिकित्सा के विशेषज्ञसभक पास लऽ गेल, मुद्दा गिरिधरक नेत्रसभक उपचार नै भऽ सकल।[२४] गिरिधर मिश्र तखन सँ प्रज्ञाचक्षु अछि। ओ न तँ पढि सकैत अछि आ न लिख सकैत अछि आ न ही ब्रेल लिपिक प्रयोग करैत अछि – ओ केवल सुनि के सीखैत अछि आ बोलि के लिपिकारसभद्वारा अपन रचनासभ लिखवावैत अछि।[२५]

प्रथम काव्य रचना

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गिरिधर के पिता मुम्बईमे कार्यरत छल, अतः हुनकर प्रारम्भिक अध्ययन घर पर पितामहक देख-रेख मे भेल। दोपहर के समयमे हुनकर पितामह हुनका रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास आदि काव्यसभक पद सुना दैत छल। तीन वर्षक आयुमे गिरिधर अवधीमे अपन सर्वप्रथम कविता रचलक् आ अपन पितामह के सुनौलक्। ई कवितामे यशोदा माता एक गोपी के श्रीकृष्णसँ लडि के लेल उलाहना दऽ रहल अछि।[२४]


जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय

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जनवरी २, २००५ ई के दिन विकलाङ्ग विश्वविद्यालय के परिसर मे मुख्य भवन के आगा अस्थि विकलाङ्ग विद्यार्थीसभक साथ कुलाधिपति जगद्गुरु रामभद्राचार्य

२३ अगस्त १९९६ ई. के दिन स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूटमे दृष्टिहीन विद्यार्थीसभक लेल तुलसी प्रज्ञाचक्षु विद्यालय के स्थापना केलक।[२५][२६] एकर बाद ओ केवल विकलाङ्ग विद्यार्थीसभक लेल उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु एक संस्थान के स्थापनाक निर्णय केलक। ई उद्देश्य के साथ ओ सितम्बर २७, २००१ ई. मे चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, मे जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय के स्थापना केलक।[२७][२८] ई भारत आ विश्वक प्रथम विकलाङ्ग विश्वविद्यालय छी।[२९][३०] ई विश्वविद्यालयक गठन उत्तर प्रदेश सरकार के एक अध्यादेश द्वारा कएल गेल, जेकरा बादमे उत्तर प्रदेश राज्य अधिनियम ३२ (२००१) मे परिवर्तित करि देल गेल।[३१][३२][३३][३४] ई अधिनियम स्वामी रामभद्राचार्य के विश्वविद्यालयक जीवन पर्यन्त कुलाधिपति सेहो नियुक्त कएल गेल। ई विश्वविद्यालय संस्कृत, हिन्दी, आङ्ग्लभाषा, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान, सङ्गीत, चित्रकला (रेखाचित्र आ रङ्गचित्र), ललित कला, विशेष शिक्षण, प्रशिक्षण, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्वशास्त्र, संगणक आ सूचना विज्ञान, व्यावसायिक शिक्षण, विधिशास्त्र, अर्थशास्त्र, अंग-उपयोजनअंग-समर्थन के क्षेत्रसभमे स्नातक, स्नातकोत्तर आ डाक्टरक उपाधिसभ प्रदान करैत अछि।[३५] विश्वविद्यालय मे २०१३ धरि आयुर्वेद आ चिकित्साशास्त्र (मेडिकल) के अध्यापन प्रस्तावित अछि।[३६] विश्वविद्यालय मे केवल चारि प्रकारक विकलाङ्ग – दृष्टिबाधित, मूक-बधिर, अस्थि-विकलाङ्ग (पङ्गु अथवा भुजाहीन) आ मानसिक विकलाङ्ग – छात्रसभक प्रवेश के अनुमति अछि, जेना कि भारत सरकार के विकलाङ्गता अधिनियम १९९५ मे निरूपित अछि। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार ई विश्वविद्यालय प्रदेश के प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी आ इलेक्ट्रानिक्स शैक्षणिक संस्थासभमे सँ एक छी।[३७] मार्च २०१० ई. मे विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षान्त समारोहमे कुल ३५४ विद्यार्थीसभक विभिन्न शैक्षणिक उपाधिसभ प्रदान कएल गेल।[३८][३९][४०] जनवरी २०११ ई मे आयोजित तृतीय दीक्षान्त समारोह मे ३८८ विद्यार्थीसभक शैक्षणिक उपाधिसभ प्रदान कएल गेल।[४१][४२]


गीता आ रामचरितमानसक ज्ञान

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एकश्रुत प्रतिभासँ युक्त बालक गिरिधर अपन पडोसी पण्डित मुरलीधर मिश्रक सहायतासँ पाँच वर्षक आयुमे मात्र पन्द्र दिनमे श्लोक सङ्ख्या सहित सात सय श्लोकसभक वाला सम्पूर्ण भगवद्गीता कण्ठस्थ करि लेलक। १९५५ ई मे जन्माष्टमी के दिन ओ सम्पूर्ण गीताक पाठ केलक।[११][२४][४३] संयोगवश, गीता कण्ठस्थ करि के ५२ वर्ष बाद नवम्बर ३०, २००७ ई के दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य संस्कृत मूलपाठ आ हिन्दी टीका सहित भगवद्गीता के सर्वप्रथम ब्रेल लिपिमे अङ्कित संस्करणक विमोचन केलक।[४४][४५][४६][४७] सात वर्षक आयुमे गिरिधर अपन पितामहक सहायतासँ छन्द सङ्ख्या सहित सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस साठि दिनमे कण्ठस्थ करि लेलक। १९५७ ई. मे रामनवमी के दिन व्रत के दौरान ओ मानसक पूर्ण पाठ केलक।[२४][४३] कालान्तर मे गिरिधर समस्त वैदिक वाङ्मय, संस्कृत व्याकरण, भागवत, प्रमुख उपनिषद्, सन्त तुलसीदासक सभ रचनासभ आ अन्य अनेक संस्कृत आ भारतीय साहित्यक रचनासभक कण्ठस्थ करि लेलक।[११][२४]


जगद्गुरुत्व

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जगद्गुरु सनातन धर्म मे प्रयुक्त एक उपाधि छी जे पारम्परिक रूपसँ वेदान्त दर्शन के ओ आचार्यसभक देल जाइत अछि जे प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता आ मुख उपनिषद्) पर संस्कृत मे भाष्य रचने अछि। मध्यकाल मे भारत मे अनेकौं प्रस्थानत्रयीभाष्यकार भेल छल यथा शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, रामानन्दाचार्य आ अन्तिम छल, वल्लभाचार्य (१४७९ से १५३१ ई)। वल्लभाचार्य के भाष्य के पश्चात् पाँच सय वर्ष धरि संस्कृत मे प्रस्थानत्रयी पर कोनो भाष्य नै लिखल गेल।[४८]

जून २४, १९८८ ई. के दिन काशी विद्वत् परिषद् वाराणसी रामभद्रदासक तुलसीपीठस्थ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूपमे चयन केलक।[] ३ फरवरी १९८९ मे प्रयाग मे महाकुम्भ मे रामानन्द सम्प्रदाय के तीन अखाडासभक महन्तसभ, सभ सम्प्रदायसभ, खालसासभ आ सन्तसभद्वारा सर्वसम्मति सँ काशी विद्वत् परिषद् के निर्णय के समर्थन कएल गेल।[४९] एकर बाद १ अगस्त १९९५ मे अयोध्या मे दिगम्बर अखाडा रामभद्रदासक जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूपमे विधिवत अभिषेक केलक।[] अखन रामभद्रदास के नाम भेल जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य। एकर बाद ओ ब्रह्म सूत्र, भगवद्गीता आ ११ उपनिषदसभ (कठ, केन, माण्डूक्य, ईशावास्य, प्रश्न, तैत्तिरीय, ऐतरेय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, बृहदारण्यक आ मुण्डक) पर संस्कृत मे श्रीराघवकृपाभाष्य के रचना केलक। ई भाष्यसभक प्रकाशन १९९८ मे भेल।[१४] ओ पहिने ही नारद भक्ति सूत्र आ रामस्तवराजस्तोत्र पर संस्कृत मे राघवकृपाभाष्य के रचना करि चुकल छल। ई प्रकार स्वामी रामभद्राचार्य ५०० वर्षसभ मे पहिल बेर संस्कृत मे प्रस्थानत्रयीभाष्यकार बनि के लुप्त भेल जगद्गुरु परम्पराक पुनर्जीवित केलक आ रामानन्द सम्प्रदाय के स्वयम् रामानन्दाचार्य द्वारा रचित आनन्दभाष्य के बाद प्रस्थानत्रयी पर दोसर संस्कृत भाष्य देलक।[४८][५०]


उपनयन आ कथावाचन

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गिरिधर मिश्रक उपनयन संस्कार निर्जला एकादशी के दिन जून २४, १९६१ ई. मे भेल। अयोध्या के पण्डित ईश्वरदास महाराज हुनका गायत्री मन्त्र के साथ-साथ राममन्त्रक दीक्षा सेहो देलक। भगवद्गीता आ रामचरितमानसक अभ्यास अल्पायुमे ही करि लैऽ के बाद गिरिधर अपन गाम के समीप अधिक मास मे होए वाला रामकथा कार्यक्रमसभमे जाए लगल। दुई बेर कथा कार्यक्रमसभमे जाए के बाद तेसर कार्यक्रममे ओ रामचरितमानस पर कथा प्रस्तुत केलक, जे अनेकौं कथावाचकसभ प्रसंशा केलक।[२४]


औपचारिक शिक्षा

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उच्च विद्यालय

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७ जुलाई १९६७ के दिन जोनपुर स्थित आदर्श गौरीशङ्कर संस्कृत महाविद्यालयसँ गिरिधर मिश्र अपन औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ केलक, जतय ओ संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ हिन्दी, आङ्ग्लभाषा, गणित, भूगोल आ इतिहासक अध्ययन केलक।[५१] मात्र एक बेर सुनि के स्मरण करै के अद्भुत क्षमतासँ सम्पन्न एकश्रुत गिरिधर मिश्र कखनो भी ब्रेल लिपि वा अन्य साधनसभक सहारा नै लेलक। तीन महिनामे ओ वरदराजाचार्य विरचित ग्रन्थ लघुसिद्धान्तकौमुदीक सम्यक् ज्ञान प्राप्त करि लेलक।[५१] प्रथमासँ मध्यमा के परिक्षासभमे चारि वर्ष धरि कक्षामे प्रथम स्थान प्राप्त करै के बाद उच्चतर शिक्षा के लेल ओ सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय गेल।[४३]

संस्कृतमे प्रथम काव्यरचना

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आदर्श गौरीशङ्कर संस्कृत महाविद्यालयमे गिरिधर छन्दःप्रभा के अध्ययन के समय आचार्य पिङ्गल प्रणीत अष्टगणक ज्ञान प्राप्त केलक। अगला ही दिन ओ संस्कृतमे अपन प्रथम पद भुजङ्गप्रयात छन्दमे रचलक्।[५१]

महाघोरशोकाग्निनातप्यमानं पतन्तं निरासारसंसारसिन्धौ।
अनाथं जडं मोहपाशेन बद्धं प्रभो पाहि मां सेवकक्लेशहर्त्तः ॥

 
युवावस्थामे गिरिधर मिश्र

शास्त्री (स्नातक) तथा आचार्य (परास्नातक)

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१९७१ मे गिरिधर मिश्र वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयमे संस्कृत व्याकरणमे शास्त्री (स्नातक उपाधि) के अध्ययन के लेल प्रविष्ट भेल।[५१] १९७४ मे ओ सर्वाधिक अङ्क अर्जित करैत शास्त्री (स्नातक उपाधि) के परीक्षा उत्तीर्ण केलक। तत्पश्चात् ओ आचार्य (परास्नातक उपाधि) के अध्ययन के लेल ई विश्वविद्यालयमे पञ्जीकृत भेल। परास्नातक अध्ययन के दौरान १९७४ मे अखिल भारतीय संस्कृत अधिवेशनमे भाग लेए गिरिधर मिश्र नयी दिल्ली आएल। अधिवेशनमे व्याकरण, साङ्ख्य, न्याय, वेदान्तअन्त्याक्षरी मे ओ पाँच स्वर्ण पदक जीतलक्।[] भारतक तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी हुनका पाँचम् स्वर्णपदकसभक साथ उत्तर प्रदेश के लेल चलवैजयन्ती पुरस्कार प्रदान केलक।[४३] हुनकर योग्यतासभसँ प्रभावित भऽ श्रीमती गान्धी हुनका आँखि के चिकित्सा के लेल संयुक्त राज्य अमरीका भेजवाक प्रस्ताव केलक, मुद्दा गिरिधर मिश्र प्रस्ताव के अस्वीकार करि देलक।[२५] १९७६ मे सात स्वर्णपदकसभ आ कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ ओ आचार्यक परीक्षा उत्तीर्ण केलक।[४३] हुनकर एक विरल उपलब्धि सेहो रहल – मुद्दा ओ केवल व्याकरणमे आचार्य उपाधि के लेल पञ्जीकरण केनए छल, हुनकर चतुर्मुखी ज्ञान के लेल विश्वविद्यालय हुनका ३० अप्रैल १९७६ के दिन विश्वविद्यालयमे अध्यापित सभ विषयसभक आचार्य घोषित केलक।[२५][५२]

विद्यावारिधि (पी.एच.डी.) एवम् वाचस्पति (डी.लिट्.)

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आचार्यक उपाधि पावे के पश्चात् गिरिधर मिश्र विद्यावारिधि (पी.एच.डी.) के उपाधि के लेल एही विश्वविद्यालयमे पण्डित रामप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशनमे शोधकार्य के लेल पञ्जीकृत भेल। हुनका विश्वविद्यालय अनुदान आयोगसँ शोध कार्य के लेल अध्येतावृत्ति सेहो मिलल, मुद्दा आगामी वर्षमे अनेक आर्थिक कठिनाइसभक सामना करए पडल।[२५] सङ्कट के बीच ओ अक्टूबर १४, १९८१ के संस्कृत व्याकरणमे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयसँ विद्यावारिधि (पी.एच.डी.) के उपाधि अर्जित केलक। हुनकर शोधकार्यक शीर्षक छल अध्यात्मरामायणे अपाणिनीयप्रयोगानां विमर्शः आ ई शोधमे ओ अध्यात्म रामायणमे पाणिनीय व्याकरणसँ असम्मत प्रयोगसभ पर विमर्श केलक। विद्यावारिधि उपाधि प्रदान करै के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग हुनका सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष के पद पर सेहो नियुक्त केलक। मुद्दा गिरिधर मिश्र ई नियुक्ति के अस्वीकार करि देलक आ अपन जीवन धर्म, समाज आ विकलाङ्गसभक सेवामे लगावेक निर्णय केलक।[२५]

१९९७ मे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय हुनका हुनकर शोधकार्य अष्टाध्याय्याः प्रतिसूत्रं शाब्दबोधसमीक्षणम् पर वाचस्पति (डी.लिट्.) के उपाधि प्रदान केलक। ई शोधकार्यमे गिरिधर मिश्र अष्टाध्यायी के प्रत्येक सूत्र पर संस्कृत के श्लोकसभमे टीका रचने अछि।[५१]


साहित्यिक कृतिसभ

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ८० सँ अधिक पुस्तकसभ आ ग्रन्थसभक रचना केनए अछि, जाहिमे सँ किछ प्रकाशित आ किछ अप्रकाशित अछि। हुनकर प्रमुख रचनासभ निम्नलिखित अछि।[१४]

 
अक्टूबर ३०, २००२ मे श्रीभार्गवराघवीयम् के लोकार्पण करैत भारतक तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य बाँया दिशामे अछि।
महाकाव्य
  • श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२) – एक सय एक श्लोकसभ वाला २१ सर्गसभमे विभाजित आ चालीस संस्कृत आ प्राकृत के छन्दसभमे बद्ध २१२१ श्लोकसभमे विरचित संस्कृत महाकाव्य। स्वयं महाकवि द्वारा रचित हिन्दी टीका सहित। एकर वर्ण्य विषय दुईटा राम अवतारसभ (परशुराम आ राम) के लीला छी। ई रचना के लेल कवि के २००५ मे संस्कृत के साहित्य एकेडेमी पुरस्कार सँ सम्मानित कएल गेल छल।[५३][५४] जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • अष्टावक्र (२०१०) – एक सय आठ पदसभ वाला आठ सर्गसभमे विभाजित ८६४ पदसभमे विरचित हिन्दी महाकाव्य। ई महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि के जीवनक वर्णन छी, जेकरा विकलाङ्गसभक पुरोधा के रूप मे दर्शाएल गेल अछि। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • अरुन्धती (१९९४) – १५ सर्गसभ आ १२७९ पदसभमे रचित हिन्दी महाकाव्य। एहीमे ऋषि दम्पती वसिष्ठ आ अरुन्धती के जीवनक वर्णन अछि। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
खण्डकाव्य
  • आजादचन्द्रशेखरचरितम् – स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद पर संस्कृतमे रचित खण्डकाव्य (गीतादेवी मिश्र द्वारा रचित हिन्दी टीका सहित)। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • लघुरघुवरम् – संस्कृत भाषा के केवल लघु वर्णसभमे रचित संस्कृत खण्डकाव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • सरयूलहरी – अयोध्या से प्रवाहित होए वाला सरयू नदी पर संस्कृतमे रचित खण्डकाव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • भृंगदूतम् (२००४) – दुईटा भागमे विभक्त आ मन्दाक्रान्ता छन्दमे बद्ध ५०१ श्लोकसभमे रचित संस्कृत दूतकाव्य। दूतकाव्यसभमे कालिदासक मेघदूतम्, वेदान्तदेशिकक हंससन्देशः आ रूप गोस्वामीक हंसदूतम् सम्मिलित अछि। भृंगदूतम मेकिष्किन्धा मे प्रवर्षण पर्वत पर रहि रहल श्रीरामक एक भँवर के माध्यमसँ लङ्का मे रावण द्वारा अपहृत माता सीता के भेजल गेल सन्देश वर्णित अछि। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • काका विदुर – महाभारत के विदुर पात्र पर विरचित हिन्दी खण्डकाव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
पत्रकाव्य
  • कुब्जापत्रम् – संस्कृत मे रचित पत्रकाव्य। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
गीतकाव्य
  • राघव गीत गुञ्जन – हिन्दी मे रचित गीतसभक सङ्ग्रह। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
  • भक्ति गीत सुधा – भगवान श्रीराम आ भगवान श्रीकृष्ण पर रचित ४३८ गीतसभक सङ्ग्रह। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
  • गीतरामायणम् (२०११) – सम्पूर्ण रामायण के कथा के वर्णित करै वाला लोकधुनसभक ढाल पर रचित १००८ संस्कृत गीतसभक महाकाव्य। ई महाकाव्य ३६-३६ गीतसभसँ युक्त २८ सर्गसभमे विभक्त अछि। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
रीतिकाव्य
  • श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८) – १०९ पदसभक तीन भागसभमे विभक्त प्राकृत के छः छन्दसभमे बद्ध ३२७ पदसभमे विरचित हिन्दी (ब्रज, अवधी आ मैथिली) भाषा मे रचित रीतिकाव्य। काव्य के वर्ण्य विषय बाल रूप श्रीराम आ माता सीता के लीलासभ अछि। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
शतककाव्य
  • श्रीरामभक्तिसर्वस्वम् – १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य जाहिमे रामभक्तिक सार वर्णित अछि। त्रिवेणी धाम, जयपुर द्वारा प्रकाशित।
  • आर्याशतकम्आर्या छन्द मे १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
  • चण्डीशतकम्चण्डी माता के अर्पित १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
  • राघवेन्द्रशतकम् – श्री राम के स्तुति मे १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
  • गणपतिशतकम् – श्री गणेश पर १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
  • श्रीराघवचरणचिह्नशतकम् – श्रीराम के चरणचिह्नसभक प्रशंसा मे १०० श्लोकसभ मे रचित संस्कृत काव्य। अप्रकाशित।
स्तोत्रकाव्य
  • श्रीगंगामहिम्नस्तोत्रम्गङ्गा नदी के महिमाक वर्णन करैत संस्कृत काव्य। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीजानकीकृपाकटाक्षस्तोत्रम्सीता माता के कृपा कटाक्ष के वर्णन करैत संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीरामवल्लभास्तोत्रम् – सीता माता के प्रशंसा मे रचित संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीचित्रकूटविहार्यष्टकम् – आठ श्लोकसभ मे श्रीराम के स्तुति करैत संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • भक्तिसारसर्वत्रम् – संस्कृत काव्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीराघवभावदर्शनम् – आठ शिखरिणीसभमे उत्प्रेक्षा अलङ्कार के माध्यमसँ श्रीराम के उपमा चन्द्रमा, मेघ, समुद्र, इन्द्रनील, तमालवृक्ष, कामदेव, नीलकमल आ भ्रमर सँ दैत संस्कृत काव्य। कवि द्वारा ही रचित अवधी कवित्त अनुवाद आ खाड बोली गद्य अनुवाद सहित। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
सुप्रभातकाव्य
  • श्रीसीतारामसुप्रभातम् – चालीस श्लोकसभ (८ शार्दूलविक्रीडित, २४ वसन्ततिलक, ४ स्रग्धरा आ ४ मालिनी) मे रचित संस्कृत सुप्रभात काव्य। कवि द्वारा रचित हिन्दी अनुवाद सहित। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित। कवि द्वारा ही गावल गेल काव्य संस्करण युकी कैसेट्स, नयाँ दिल्ली द्वारा विमोचित।
भाष्यकाव्य
  • अष्टाध्याय्याः प्रतिसूत्रं शाब्दबोधसमीक्षणम् – पद्य मे अष्टाध्यायी पर संस्कृत भाष्य। विद्यावारिधि शोधकार्य| राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान द्वारा प्रकाश्यमान|
नाटककाव्य
  • श्रीराघवाभ्युदयम् – श्रीराम के अभ्युदय पर संस्कृत मे रचित एकाङ्की नाटक। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • उत्साह – हिन्दी नाटक। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
 
जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा रचित किछ पुस्तकसभ आ ग्रन्थ (सम्पादित श्रीरामचरितमानस के प्रति सहित)
प्रस्थानत्रयी पर संस्कृत भाष्य
  • श्रीब्रह्मसूत्रेषु श्रीराघवकृपाभाष्यम् – ब्रह्मसूत्र पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीमद्भगवद्गीतासु श्रीराघवकृपाभाष्यम् – भगवद्गीता पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • कठोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्कठोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • केनोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्केनोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • माण्डूक्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्माण्डूक्योपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • ईशावास्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्ईशावास्योपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • प्रश्नोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्प्रश्नोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • तैत्तिरीयोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्तैत्तिरीयोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • ऐतरेयोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्ऐतरेयोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • श्वेताश्वतरोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्श्वेताश्वतरोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • छान्दोग्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्छान्दोग्योपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • बृहदारण्यकोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्बृहदारण्यकोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • मुण्डकोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्मुण्डकोपनिषद् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
अन्य संस्कृत भाष्य
  • श्रीनारदभक्तिसूत्रेषु श्रीराघवकृपाभाष्यम्नारद भक्ति सूत्र पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश द्वारा प्रकाशित।
  • श्रीरामस्तवराजस्तोत्रे श्रीराघवकृपाभाष्यम् – रामस्तवराजस्तोत्रम् पर संस्कृत मे रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
हिन्दी भाष्य
  • महावीरीहनुमान् चालीसा पर हिन्दी मे रचित टीका।
  • भावार्थबोधिनी – श्रीरामचरितमानस पर हिन्दी मे रचित टीका।
  • श्रीराघवकृपाभाष्य – श्रीरामचरितमानस पर हिन्दी मे नौ भागसभमे विस्तृत टीका। रच्यमान।
विमर्श
  • अध्यात्मरामायणे अपाणिनीयप्रयोगानां विमर्शः – अध्यात्म रामायण मे पाणिनीय व्याकरण से असम्मत प्रयोगसभ पर संस्कृत विमर्श। वाचस्पति उपाधि हेतु शोधकार्य। अप्रकाशित।
  • श्रीरासपंचाध्यायीविमर्शः (२००७) – भागवत पुराण के रासपंचाध्यायी पर हिन्दी विमर्श। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
प्रवचन संग्रह
  • तुम पावक मँह करहु निवासा (२००४) – रामचरितमानस मे माता सीता के अग्नि प्रवेश पर सितम्बर २००३ मे देल गेल नवदिवसीय प्रवचनसभक सङ्ग्रह। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • अहल्योद्धार (२००६) – रामचरितमानस मे श्रीराम द्वारा अहल्या के उद्धार पर अप्रैल २००० मे देल गेल नवदिवसीय प्रवचनसभक सङ्ग्रह। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
  • हर ते भे हनुमान (२००८) – शिव के हनुमान रूप अवतार पर अप्रैल २००७ मे देल गेल चतुर्दिवसीय प्रवचनसभक सङ्ग्रह। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलाङ्ग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।


सन्दर्भ सामग्रीसभ

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  3. लोक सभा, अध्यक्ष कार्यालय। "Speeches" (अंग्रेज़ीमे)। अन्तिम पहुँच मार्च ८, २०११Swami Rambhadracharya, ..., is a celebrated Sanskrit scholar and educationist of great merit and achievement. ... His academic accomplishments are many and several prestigious Universities have conferred their honorary degrees on him. A polyglot, he has composed poems in many Indian languages. He has also authored about 75 books on diverse themes having a bearing on our culture, heritage, traditions and philosophy which have received appreciation. A builder of several institutions, he started the Vikalanga Vishwavidyalaya at Chitrakoot, of which he is the lifelong Chancellor. (स्वामी रामभद्राचार्य, ...., बहुमुखी प्रतिभा और उपलब्धियों के धनी एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान् और शिक्षाविद् हैं। ... आपकी अनेक शैक्षणिक उपलब्धियाँ हैं और कईं माननीय विश्वविद्यालयों ने आपको मानद उपाधियाँ प्रदान की हैं। आप एक बहुभाषाविद् हैं और आपने अनेक भारतीय भाषाओं मे काव्य रचे हैं। आपने विविध विषयवस्तु वाली ७५ पुस्तकें रची हैं, जिन्होंने हमारी संस्कृति, धरोहर और परम्पराओं पर छाप छोड़ी है और जिन्हें सम्मान प्राप्त हुआ है। आपने कई संस्थानों के साथ चित्रकूट मे विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जिसके आप आजीवन कुलाधिपति हैं।){{cite web}}: CS1 maint: unrecognized language (link)
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बाह्य जडीसभ

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एहो सभ देखी

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