विदुर
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विदुर (अर्थ कुशल, बुद्धिमान अथवा मनीषी) हिन्दू ग्रन्थ महाभारतक केन्द्रिय पात्रसभमे सँ एक छथि। ओ हस्तिनापुरक प्रधानमन्त्री, कौरव आ पाण्डवसभक काका आ धृतराष्ट्र एवम् पाण्डुक भाई छलाह। हुनकर जन्म एक दासीक गर्भसँ भेल छल। विदुरकेँ धर्मराजक अवतार सेहो मानल जाइत अछि।
विदुर | |
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फाइल:Vidura and Dhritarashtra.jpg | |
जानकारी | |
परिवार | व्यास (पिता) परिश्रमी (माँ) |
जन्मक कथा
सम्पादन करीहस्तिनापुर नरेश शान्तनु आ रानी सत्यवतीक चित्राङ्गद आ विचित्रवीर्य नामक दुईटा पुत्र भेलनि। महाराज शान्तनुक स्वर्गवास चित्राङ्गद आ विचित्रवीर्यक बाल्यकालहि में भs गेल छलनि एहि कारण हुनकर पालन पोषण भीष्म केर देख रेख में भेल छलनि। भीष्म चित्राङ्गदक जेठ होएबाक कारण हुनका राजगद्दी पर बैसा देलनि मुदा किछुए दिनमें गन्धर्वगण सँ युद्ध करैत चित्राङ्गद मारल गेलाह । एहि घटनाक पश्चात भीष्म हुनका अनुज विचित्रवीर्यकेँ राज्यभार सौंप देलन्हि। आब भीष्म विचित्रवीर्यक विवाहक लेल चिन्तित भेलाह । ओही समय काशीराजक तीन कन्या अम्बा, अम्बिका आ अम्बालिकाक स्वयंवरक समाचार सुनि हुनकर स्वयंवरमे जा भीष्म ओतय आएल समस्त राजासभकेँ परास्त कए देलन्हि आ तीनू कन्याक हरण कए हस्तिनापुर लए आएलाह। जेठ कन्या अम्बा भीष्मकेँ अपन प्रेम सम्बन्धक समाचार देलीह आ अप्पन निश्चय सँ हुनका कहलनि जे ओ अपन तन-मन राजा मद्रराजशाल्व केँ अर्पित कए चुकल छथि।
महाराज मद्रराजशाल्व अम्बाकेँ ग्रहण करबा सँ अस्वीकार केलनि अतः ओ पुनः हस्तिनापुर आपस आबि भीष्मकेँ कहलनि, "हे आर्य! अहाँ हमर हरण केलहुँ अतएव अहाँ हमरासँ विवाह केलौं।" मुदा भीष्म अपन प्रतिज्ञा सँ प्रतिवद्ध राहबाक कारणें हुनकर विवाह प्रस्ताव स्वीकार नहि क सकलाह। आब अम्बा रुष्ट भ परशुरामजी केँ सरणापन्न भेलीह आ हुनकासँ अपन व्यथा सुना सहायताक अनुरोध केलनि।
परशुराम अम्बासँ कहलनि, "हे देवि! अहाँ चिन्ता जूनि करू, हम अहाँक विवाह भीष्मक सँग कराएब।" परशुराम जे भीष्मक गुरु सेहो छलाह बजाए अम्बा सँ विवाह करबाक आदेश देलखिन मुदा भीष्म अप्पन प्रतिज्ञाक कथा सुनाए अपन असमर्थता देखेलनि । परिणाम स्वरूप दूनू योद्धा में भयानक युद्ध भेल। दूनू गोटे अभूतपूर्व योद्धा छलाह फलस्वरूप हारि - जीतक फैसला असंभव छल । अंततोगत्वा स्वयं ब्रह्मदेव केँ हस्तक्षेप सँ ई महायुद्ध बन्द भेल। अम्बा निराश भए भीष्म सँ प्रतिशोध लेबाक लेल वन में तपस्या करबाक लेल चलि गेलीह।
विचित्रवीर्य अपन दुनु रानीसभक साथ भोग विलासमे रत भ गेल मुद्दा दुनु रानीसभसँ हुनकर कोनो सन्तान नै भेल आ ओ क्षय रोगसँ पीडीत भ मृत्युक प्राप्त भ गेल। आब कुल नाश होमए के भयसँ माता सत्यवती एक दिन भीष्मसँ कहलक्, "पुत्र! ई वंशक नष्ट होमएसँ बचावेक लेल हमर आज्ञा अछि कि अहाँ ई दुनु रानीसभसँ पुत्र उत्पन्न करु।" माताक बात सुनि भीष्म कहलक्, "माता! हम अपन प्रतिज्ञा कोनो भी स्थितिमे भंग नै करि सकैत छी।"
ई सुनि माता सत्यवतीक अत्यन्त दुःख भेल। अचानक हुनका अपन पुत्र वेदव्यासक स्मरण आएल। स्मरण करैत ही वेदव्यास ओतय उपस्थित भ गेल। सत्यवती हुनका देख के कहलक्, "हे पुत्र! अहाँक सभ भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी भ गेल। अतः हमर वंशक नाश होम्एसँ बचावेक लेल हम अहाँक आज्ञा दै छी कि अहाँ हुनकर पत्नीसभसँ सन्तान उत्पन्न करु।" वेदव्यास हुनकर आज्ञा मानि कहलक्, "माता! अहाँ ओ दुनु रानीसभसँ कहि दियौ कि ओ एक वर्ष धरि नियम व्रतक पालन करैत रहे तखन हुनकर गर्भ धारण होएत्।" एक वर्ष व्यतीत भ जाए पर वेदव्यास सभसँ पहिल बडकी रानी अम्बिकाक पास गेल। अम्बिका हुनकर तेजसँ डरि के अपन नेत्र बन्द करि लेलक। वेदव्यास लौट के मातासँ कहलक्, "माता अम्बिकाक बडका तेजस्वी पुत्र होएत मुद्दा नेत्र बन्द करि के दोषके कारण ओ अन्धा होएत्।" सत्यवतीक ई सुनि अत्यन्त दुःख भेल आ ओ वेदव्यासक छोटकी रानी अम्बालिकाक पास भेजलक्। अम्बालिका वेदव्यासक देखि भयभित भ गेल। ओकर कक्षसँ लौटे पर वेदव्यास सत्यवतीसँ कहलक्, "माता! अम्बालिकाक गर्भसँ पाण्डु रोगसँ ग्रसित पुत्र होएत्।" एहीसँ माता सत्यवतीक दुःख भेल आ ओ बडकी रानी अम्बिकाक पुनः वेदव्यासक पास जाए के आदेश देलक। ई बेर बडकी रानी स्वयम् नै जाके अपन दासीके वेदव्यासक पास भेज देलक। दासी आनन्दपूर्वक वेदव्याससँ भोग करौलक्। ई बेर वेदव्यास माता सत्यवतीक पास आवि कहलक्, "माते! ई दासीके गर्भसँ वेद-वेदान्तमे पारङ्गत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होएत्।" एतेक कहि वेदव्यास तपस्या करै चलि गेल।
समय आवे पर अम्बिकाक गर्भसँ जन्मान्ध धृतराष्ट्र, अम्बालिकाक गर्भसँ पाण्डु रोगसँ ग्रसित पाण्डु तथा दासीक गर्भसँ धर्मात्मा विदुरक जन्म भेल।
सन्दर्भ सामग्रीसभ
सम्पादन करीबाह्य जडीसभ
सम्पादन करीएहो सभ देखी
सम्पादन करीस्रोत
सम्पादन करीसुखसागरक सौजन्यसँ