प्राचीन मिथिला विद्यापीठ
प्राचीन मिथिला विश्वविद्यालय भारत क एक प्राचीन विश्वविद्यालय छल आ न्यायशास्त्र आ तार्किक विज्ञानक लेल प्रसिद्ध छल । भारतमे वैदिक कालक गुरुकुलकेँ विश्वविद्यालयक प्राचीन रूप कहल जा सकैत अछि कारण एहिमे उच्च शिक्षाक व्यवस्था छल। बाद में उपनिषद आ ब्राह्मण काल में "परिषद" के विश्वविद्यालय के रूप में कार्यरत पाबैत छी | ई परिषद् सब विद्वान शिक्षक आ छात्र के सम्मेलन आयोजित करैत छल आ उपाधि प्रदान करबाक लेल अधिकृत छल | मिथिलाक राजा जनक द्वारा अपन दरबार मे आयोजित दार्शनिक सम्मेलन सँ क्रमश: एकर आरम्भ भेल । एहि दार्शनिक सम्मेलन सभसँ विद्याक आसन गठन भेल आ ई विद्याक-आसन मिथिला विश्वविद्यालयमे परिणत भऽ गेल। ई ब्राह्मणवादी शिक्षा व्यवस्थाक प्रमुख केंद्र छल । प्राचीन कालसँ मैथिल ब्राह्मण प्राचीन भारतीय दर्शनकेँ अलग-अलग आयाम दऽ चुकल छलाह। न्याय शास्त्र, तर्क शास्त्र, मीमांसा आ शांख्य शास्त्र बेसीतर मिथिला सँ निकलल। अष्टावक्र राजा जनककेँ अस्तित्वक आध्यात्मिक स्वरूप आ व्यक्ति स्वतन्त्रताक अर्थ सिखबैत छलाह। अष्टावक्र एवं जनक के बीच दार्शनिक वार्तालाप प्राचीन दार्शनिक ग्रंथों के रूप में दर्ज यही जे अष्टावक्र गीता आ अष्टावक्र संहिता के नाम स जानल जायात यहीच। तहिना याज्ञवल्क्य राजा जनक केँ ब्रह्म विद्या सिखौलनि । अनुमान अछि जे ओ लगभग आठम शताब्दी ई.पू. छल्ह । अक्षपदा गौतम न्याय शास्त्रक स्थापना केलनि ।
प्राचीन मिथिला विद्यापीठ | |
प्रकार | प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय |
---|---|
स्थापना | त्रेता युग मे राजा जनक के द्वारा |
संस्थापक | जनक |
धार्मिक सम्बन्धन | सनातन हिन्दू संस्कृति |
स्थान | मिथिला |
ब्रह्माणक शिक्षा स्थान |
मिथिला के विद्वान आर अध्यापक
सम्पादन करी• कपिल प्राचीन भारतीय दर्शन शांख्य शास्त्र के रचयिता छथि। हिनक आश्रम बिहारक मधुबनी जिलाक मिथिला क्षेत्रक कपिलेश्वर स्थान पर छल । ओही आश्रममे ओ अपन शांख्य शास्त्र दर्शन लिखैत छलाह आ ओतए अपन शिष्य सभकेँ शिक्षा दैत छलाह।
• उद्दालक अरुणि जी जीवनक तीन तत्वक सिद्धान्तक खोज केलनि। ओ अष्टावक्र आ याज्ञवल्क्यक गुरु छलाह।
• अष्टावक्र एवं राजा जनक के बीच दार्शनिक वार्तालाप प्राचीन दार्शनिक ग्रंथों के रूप में दर्ज यही जे अष्टावक्र गीता आ अष्टावक्र संहिता के नाम स जानल जायात यहीच ।
• याज्ञवल्क्य सतपथ ब्राह्मणक रचयिता छथि आ भारतीय दर्शनक जनक मानल जाइत छथि।
• अक्षपदा गौतम न्याय शास्त्रक रचयिता छथि। प्राचीन मिथिला विश्वविद्यालय न्याय शास्त्रक लेल बहुत प्रसिद्ध छल।
• गार्गी वाचकनावी एकटा ब्रह्मवादिनी छल। ओ ऋग्वेद मे कतेको स्तोत्रक रचना केलनि जाहि मे समस्त अस्तित्वक उत्पत्ति पर प्रश्न ठाढ़ कयल गेल छल। मिथिलाक राजा जनकक दरबारमे हिनका नवरत्न में सँ एकक रूपमे सम्मानित कएल गेल छल। ओ याज्ञवल्क्यक संग शास्त्रार्थ मे भाग लेलनि, जाहि मे प्रकृतिक अस्तित्वक आधार सँ सम्बन्धित किछु प्रश्न पूछलनि। याज्ञवल्क्य हुनकर सभ प्रश्नक उत्तर देलनि।
• मैत्रेयी एकटा आओर ब्रह्मवादिनी छलाह जे प्राचीन भारत मे वैदिक काल मे रहैत छलाह। बृहदारण्यक उपनिषदमे वैदिक ऋषि याज्ञवल्क्यक दू पत्नीमे सँ एकक रूपमे हिनक उल्लेख अछि। ओ अद्वैत दार्शनिक छलीह। ऋग्वेदमे लगभग दस स्तोत्र मैत्रेयीकेँ देल गेल अछि। ओ बृहदारण्यक उपनिषद मे निहित एकटा संवाद मे आत्त्मा क हिन्दू अवधारणा क अन्वेषण करैत छथि । मैत्रेयी-याज्ञवल्क्य संवाद मे कहल गेल अछि जे प्रेम व्यक्तिक आत्मा सँ संचालित होइत अछि, आ एहि मे आत्मन आ ब्रह्मक स्वरूप आ ओकर एकता, अद्वैत दर्शनक मूल पर चर्चा कयल गेल अछि। अनुमान अछि जे ओ लगभग 8म शताब्दी ई.पू. छलिह।
• महर्षि पंचशिखा मिथिलाक राजा धर्मध्वज जनक केँ सांख्य शास्त्रक उपदेश देलनि। ओ षष्ठी तंत्रक रचना केलनि। ई पुस्तक सांख्य शास्त्र के 60 अध्याय यहीच। ओ पदार्थक प्रकृति, आत्म, बोध आ क्रियाक संकाय आ सुप्रा सामान्य शक्ति पर 60000 श्लोक लिखने छलाह | ओ पार्थिव जीवन मे आ मृत्युक बाद शरीर आ आत्माक सम्बन्धक विषय मे सिखबैत छलाह | ओ कपिल ऋषि के अनुयायी छलाह।
• शुखदेव जे व्यास ऋषिक पुत्र छलाह। राजा जनकसँ उच्च आध्यात्मिक ज्ञानक अध्ययन करबाक हेतु ओ मिथिला आएल छलाह।
मिथिला में पुस्तकालय
सम्पादन करीइतिहासकारक अनुसार प्राचीन मिथिला ज्ञान आ शिक्षाक आसन छल। वो सब एकरा सरस्वती विद्यापीठ सेहो कहलक। प्राचीन मिथिलाक प्रत्येक गाम के अपन गुरुकुल मे एकटा पुस्तकालय छल। ओहि पुस्तकालय सभ मे हाथक लिखल पोथी राखल जाइत छल । ई पोथी सभ गाम-घरक ब्राह्मण लोकनि लिखने छलाह। ओहि समय मे ब्राह्मण लोकनिक मौलिक काज छलनि जे ओ पोथी लिखि अपन शिष्य लोकनि केँ सिखबैत छलाह | एहि पोथी सभक उपयोग ओतय के विद्यार्थी लोकनि अपन शैक्षणिक पाठ पाठक लेल करैत छलाह |