ऋग्वेद सनातन धर्म वा हिन्दू धर्मक स्रोत छी। एहीमे १०२८ सूक्त अछि , जाहिमे देवतासभक स्तुति कएल गेल अछि । एहीमे देवतासभक यज्ञमे आह्वान करै के लेल मन्त्र अछि , एही सर्वप्रथम वेद छी । ऋग्वेदक संसारक सभ इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवारक सभसँ पहिल रचना मानैत अछि। ई संसारक सर्वप्रथम ग्रन्थसभ मे सँ एक छी। ऋक् संहितामे १० मण्डल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त अछि। वेद मंत्रसभक समूहक सूक्त कहल जाइत् अछि, जाहिमे एकदैवत्व तथा एकार्थक ही प्रतिपादन रहैत अछि। कात्यायन प्रभति ऋषिसभक अनुक्रमणीक अनुसार ऋचासभक संख्या १०,५८०, शब्दसभक संख्या १५३५२६ तथा शौनक कृत अनुक्रमणीक अनुसार ४,३२,००० अक्षर अछि। ऋग्वेदक जिन २१ शाखासभक वर्णन मिलैत अछि, उनमासँ चरणव्युह ग्रन्थक अनुसार पाँच ही प्रमुख अछि- १. शाकल, २. वाष्कल, ३. आश्वलायन, ४. शांखायन आ माण्डूकायन। ऋग्वेदमे ऋचासभक बाहुल्य होएसँ एकरा ज्ञानक वेद कहल जाइत् अछि। ऋग्वेदमे ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र वा मृत्युञ्जय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित अछि , ऋग्विधानक अनुसार एही मंत्रक जपक साथ विधिवत व्रत तथा हवन करै के लेल दीर्घ आयु प्राप्त होएत् अछि, मृत्यु दुर करि सभ प्रकारक सुख प्राप्त होएत अछि। विश्वविख्यात गाईत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) सेहो एहीमे वर्णित अछि। ऋग्वेदमे अनेक प्रकारक लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७),श्री सूक्त वा लक्ष्मी सुक्त (ऋग्वेदक परिशिष्ट सूक्तक खिलसूक्तमे), तत्त्वज्ञानक नाशताव्दीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ-सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) आ विवाह आदिक सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित अछि, जाहीमे ज्ञान विज्ञानक चरमोत्कर्ष देखाई दैत अछि।

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