वर्णरत्नाकर, शाब्दिक अर्थ शब्दसभक सागर, मैथिली भाषाक सबसँ प्राचीन गद्य कृति अछि, जे सन् १३२४ मे कवि ज्योतिरीश्वर द्वारा लिखल गेल छल। लेखक कर्नाट वंशक राजा हरिसिंहदेवक (राज. सन् १३०४-१३२४) दरबारक हिस्सा छल, जकर राजधानी सिमरौनगढ छल।

वर्ण रत्नाकर
एसियाटिक सोसाइटी अफ कोलकाता[१]
वर्ण रत्नाकर, पृष्ठ ७७ (ख)
प्रकारविश्वकोश[२]
तिथिसन् १३२४
मूल उत्पति स्थलमिथिला
भाषा(सभ)मैथिली
लेखक(सभ)ज्योतिरीश्वर ठाकुर
सामग्रीपात
आकार१२.७ × ५ सेमी; ७७ पात; १७ गहदाएल[१]
स्थितिसंरक्षित
लिपितिरहुता
खोजकर्तापण्डित हर प्रसाद शास्त्री (सन् १८८५-९०) नेपालमे

एहि कृतिमे विभिन्न विषय आ परिस्थितिक वर्णन अछि। ई कृति मध्यकालीन भारतीय उपमहाद्वीपक जीवन आ संस्कृति केर बारेमे बहुमूल्य जानकारी दैत अछि। ग्रन्थ सात कल्लोल (तरङ्ग)मे विभक्त अछि : नगर वर्णन, नायक वर्णन, अस्थानवर्णन, ऋतुवर्णन, प्रार्थनावर्णन, भट्टादिवर्णन आ श्मशानवर्णन। ८४ सिद्धक अपूर्ण सूची पाठमे भेटैत अछि, जाहिमे मात्र ७६ नाम अछि। एहि ग्रन्थक एकटा पाण्डुलिपि एसियाटिक सोसाइटी, कोलकातामे सुरक्षित अछि।

एहि विश्वकोश ग्रन्थमे अबहट्ट शब्दक प्रयोग पहिल बेर भेल छल। बादमे मैथिली कवि विद्यापति अबहट्टमे अपन कविता कीर्तिलता लिखने छल। प्रारम्भिक मैथिली साहित्यक आधार शीला केर रूपमे एहि ग्रन्थ केर लेल जाएत अछि।

सन्दर्भ सामग्रीसभ सम्पादन करी

  1. १.० १.१ Jyotiśvara. (1998). Varṇa-ratnākara of Jyotiriśvara of Kaviśekharācārya. New Delhi: Sahitya Akademi. pp. ix. आइएसबिएन 81-260-0439-8. OCLC 40268712. 
  2. Mukherjee, Sujit. (1998). A dictionary of Indian literature. Hyderabad: Orient Longman. pp. 153. आइएसबिएन 81-250-1453-5. OCLC 42718918.