चोल राजवंश (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारतक एक राजवंश छल। दक्षिण भारतमे आ अन्य आस - पासक देशसभमे तमिल चोल शासकसभ ९हम शताब्दीसँ १३हम शताब्दीक बीच एक अत्यन्त शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्यक निर्माण केलक।[]

चोल राजवंश
300s ई.पू.–1279
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अपने चरम उत्कर्ष के समय चोल साम्राज्य तथा उसका प्रभावक्षेत्र (1050 ई.)
राजधानी पूर्वी चल: पुहर, उरैयर,
मध्यकालीन चोल: तंजावुर
गंगकौडे चोलपुरम
भाषासभ तमिल, संस्कृत
धर्म हिन्दू
शासन साम्राज्य
राजा और शासक
 •  848–871 विजयालय चोल
 •  1246–1279 राजेन्द्र चोल ३
ऐतिहासिक युग मध्य युग
 •  स्थापित 300s ई.पू.
 •  मध्यकालीन चोल का उदय 848
 •  विस्थापित 1279
क्षेत्रफल
 •  1050 est. ३६,००,००० किमी (१४,००,००० वर्ग माइल)
उतराधिकारी
पाण्ड्य
वर्तमान समयमे  India
 Sri Lanka
 Bangladesh
 Burma
 Thailand
 Malaysia
 Cambodia
 Indonesia
 Vietnam
 Singapore
 Maldives

'चोल' शब्दक व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकारसँ कएल गेल अछि। कर्नल जेरिनो चोल शब्द कें संस्कृत "काल" एवं "कोल" सं संबद्ध करैत एकरा दक्षिण भारत कें कृष्णवर्ण आर्य समुदाय कें सूचक मानैत छथि. चोल शब्द संस्कृत "चोर" आ तमिल "चोलम्" सँ सेहो सम्बद्ध कएल गेल अछि मुदा एहिमे सँ कोनो मत सही नहि अछि। प्रारम्भिक काल सँ चोल शब्दक प्रयोग एही नामक राजवंश द्वारा शासित प्रजा आ भूभागक लेल होइत रहल अछि। संगमयुगीन मणिमेक्लैमे चोलसभके सूर्यवंशी कहल गेल अछि। चोलसभक अनेक प्रचलित नामसभमे सेम्बियन सेहो अछि। शेंबियनक आधार पर ओ सभ शिबी सँ उत् पन् न सिद्ध करैत अछि। १२ अम शताब्दीक बहुतो स्थानीय राजवंश अपना केँ काल सँ उत् पन् न कश्यप गोत्रीय कहैत अछि।

चोलसभक उल्लेख अति प्राचीन कालसँ भेटि रहल अछि। कात्यायन चोदक उल्लेख कएने छथि। अशोकक अभिलेखमे सेहो एकर उल्लेख उपलब्ध अछि। मुदा संगमयुगमे ओसभ दक्षिण भारतीय इतिहासके प्रभावित केलक। संगम कालक अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटसभमे काल अत्यधिक प्रसिद्ध भेल संगमयुगक बाद चोल इतिहास अज्ञात अछि। मुदा चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहि भेल छल किएक तँ रेनन्दु (कुडाया जिला) प्रदेशमे चोल पल्लव, चालुक्य आ राष्ट्रकूटक अधीन शासन करैत रहल।

चोलसभक उदय

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उपर्युक्त दीर्घकालीन प्रभुत्वहीनताक बाद नौम शताब्दीक मध्यसँ चोलसभक पुनरुत्थान भेल। एहि चोल वंशक संस्थापक विजयालय (८५० - ८७० - ७१ ई.) पल्लव अधीनतामे उरायुर प्रदेशक शासक छल।[] विजयालयक वंशावलीमे लगभग २० राजासभ आएल, जे कुल मिला कऽ चारि सय वर्षसँ अधिक समय तक शासन केलक। विजयालयक बाद आदित्य प्रथम (८७१- ९०७) आ परातंक प्रथम (९०७-९५५) शासन केलक। परांतक प्रथम पाण्डव-सिंहल नरेशसभक सम्मिलित शक्तिक पल्लव, बाण, बैडुम्बसभक अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय केँ सेहो पराजित केलक। चोल शक्ति आ साम्राज्यक वास्तविक संस्थापक परांतक छल। ओ लंकापति उदय (९४५ - ५३) क समय सिंहल पर सेहो एक असफल आक्रमण केलक। परांतक अपन अन्तिम दिनसभमे राष्ट्रकूट सम्राट कृष्ण तृतीय द्वारा ९४९ ई. मे भारी पराजय भेल। एहि पराजयक फलस्वरूप चोल साम्राज्यक नींव हिला देल गेल। परांतक प्रथमक बाद ३२ वर्षमे अनेक चोल राजा शासन केनए छल। एहिमे गण्डरादित्य, अरिञ्जय आ सुन्दर चोल वा परातक दिव्य प्रमुख छल।

चोलोक अभिलेख आदि सँ ज्ञात होइत अछि जे हुनकर शासन सुसंगठित छल। राज्यक सबसँ पैघ अधिकारी राजा छलाह, ओ मन्त्रीसभ आ राजाधिकारिसभक सलाहसँ शासन करैत छलाह। शासन सुबिधाक दृष्टि सँ पूरा राज्य अनेक मंडल मे विभक्त छल। मंडल कोट्टम या बलनाडु मे बाँटैत छल। एकर बादक शासकीय परम्परामे नाडु (जिला), कुर्रम (गामसमूह) आ ग्रामम् छल। चोल राज्यकालमे ईसभक शासन जनसभासभद्वारा होइत छल। चोल ग्राम सभासभके "उर" या "सभा" कहल जाइत छल। एकर सब सदस्य ग्रामीण छल। सभाक कार्यकारिणी परिषद् (आडुगणम्) क चुनाव ई लोक अपनेमे सँ करैत छल। उत्तर मेरुर सँ प्राप्त अभिलेख सँ ओहि ग्राम सभाक कार्य आदिक विस्तृत ज्ञान प्राप्त होइत अछि। उत्तरमेरुर ग्रामशासन सभाक पाँच उपसमिति द्वारा होइत छल। एकर सदस्य अवैतनिक छल आ ओकर कार्यकाल मात्र एक वर्षक होइत छल। ई सभ अपन शासनक लेल स्वतन्त्र छल आ सम्राट सेहो अपन कार्यवाहीमे हस्तक्षेप नहि कऽ सकैत छल।

नटराजक कांस्य प्रतिमा चोल शासक प्रसिद्ध भवन निर्माण कर्ता छल। सिंचाईक व्यवस्था, राजमार्गक निर्माण आदिक अतिरिक्त ओ नगरसभ आ विशाल मन्दिर तंजौरमे बनौलनि। ई प्राचीन भारतीय मन्दिरसभमे सभसँ ऊँच आ पैग अछि। तंजौरक मन्दिरक देबाल पर अंकित चित्र उल्लेखनीय आ महत्वपूर्ण अछि। राजेन्द्र प्रथम अपन नगर गंगाकोण्डपुरम (त्रिचनपल्ली) मे एहि प्रकारक एक दोसर विशाल मन्दिरक निर्माण कराओल। चोलसभक शासनकालमे मूर्तिकलाक सेहो प्रबल विकास भेल। एहि कालक पाथर आ धातुक मूर्तिसभ अत्यन्त सजीव आ कलात्मक अछि।

चोल शासनक अन्तर्गत साहित्यक सेहो बड्ड उन्नति भेल। हिनकर शक्तिशाली विजेतासभक विजय आदिकेँ लक्षित करैत अनेक प्रशस्तिपूर्ण ग्रन्थ लिखल गेल। एहि प्रकारक ग्रंथसभमे जयगोंडारक "कलिगंतुपर्णि" अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि। एकर अतिरिक्त तिरुत्तक्कदेव द्वारा लिखल गेल "जीवक चिंतामणि " तमिल महाकाव्यसभमे अन्यतम मानल जाइत अछि। एहि कालखंडक सभसँ पैघ कवि छलाह कंबन। ओ तमिल "रामायण" क रचना कुलोत्तुंग तृतीयक शासनकालमे केलक। एकर अतिरिक्त व्याकरण, कोष, काव्यशास्त्र तथा छन्द आदि विषयक अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थसभक रचना सेहो एहि समयमे भेल।

  • विजयालय चोल ८४८-८७१
  • आदित्य ८७१ - ९०७ -
  • परन्तक चोल १९०७ - ९५०
  • गंधरादित्य ९५० - ९५७
  • अरिन्जेय चोल ९५६ - ९५७
  • सुन्दर चोल ९५७ - ९७०
  • उत्तम चोल ९७० - ९८५
  • राजा चोल ९८५ - १०१४
  • राजेन्द्र चोल १०१२ - १०४४
  • राजाधिराज चोल १०४४ - १०५४
  • राजेन्द्र चोल २ १०५४ - १०६३
  • वीराजेन्द्र चोल १०६३ - १०७०
  • अधिराजेन्द्र चोल १०६७ - १०७०
  • चालुक्य चोल
  • कुलोतुंग चोल १०७० - ११२०
  • कुलोतुंग चोल २ ११३३ - ११५०
  • राजाराज चोल २ ११४६ - ११६३
  • राजाधिराज चोल २ ११६३ - ११७८
  • कुलोतुंग चोल ३ ११७८ - १२१८
  • राजाराज चोल ३ १२१६ - १२५६
  • राजेन्द्र चोल ३ १२४६ - १२७९

एहो सभ देखी

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सन्दर्भ सामग्रीसभ

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  1. Kalidos, Raju. History and Culture of the Tamils: From Prehistoric Times to the President's Rule. Vijay Publications, 1976. प॰ 43. 
  2. Zvelebil, Kamil (1973) (enमे). The Smile of Murugan: On Tamil Literature of South India. BRILL. आइएसबिएन 978-90-04-03591-1. https://books.google.com/books?id=degUAAAAIAAJ&q=info:3mNeiVqlnhoJ:scholar.google.com/&pg=PR9. 

बाह्य जडीसभ

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