यजुर्वेद
यद्यपि वैदिक सनातन वर्णाश्रमधर्मीसभ अनादि अपौरुषेय (मन्त्र+ब्राह्मणात्मक) वाक्कृतिर्वेद कहिक मानित अछि | ई आधारमे - मन्त्रश्च ब्राह्मणश्चैव द्वावेतौ वेदसंज्ञकौ कण्ठं भित्वा विनिर्यातौ ह्यादित्यस्य दयावतः||
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यजुर्वेद चार वेदसभ मध्येक हिन्दू धर्मक एकटा महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ छी । जाहीमे मे यज्ञ-प्रक्रियाक निम्ति गद्य आ पद्य मन्त्रसभ अछी । यजुर्वेद यजुस + वेद आ हिन्दू धर्मक चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थसभमे सँ एकटा छी । मन्त्रभाग आ ब्राह्मणभाग करि दुई भागमे ओकारा देखेल जैत अछि |ई सब त आदि कालमे वेद सभ छल | पहिले चार भागमे केलक | वेदव्यासक अनुसार (गरुडमहापुराणक पहिल खण्ड) एकैवासीत् यजुर्वेदः चतुर्धा व्यभजत् पुनः|| सृष्टिकालमे (वैदिक कालमे ) यजुर्वेद नाम के वेद छल | बादमे चातुर्होत्रविधि द्वारा यज्ञ सिद्धि करै मे ऋग्यजुसामाथर्वक रुपमे चार भाग लगाएल गेल |यज्ञमे वाचन कएल जाइवाला गद्यात्मक मन्त्रसभक ‘यजुस’ कहल जाइत् अछि। यजुस नाममे ई आधारित आ वेदक क नाम यजुस+वेद दुई शव्दसभक सन्धिसँ (यजुर्वेद) बनल अछि। अतः यजुर्वेदक पद्यात्मक मन्त्रसभ ॠग्वेद आ अथर्ववेदमे यथावत् कएल गेल अछि।[१] एहीमे स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुतरास कम अछि। ई वेदमे अधिकांशतः यज्ञ आ हवनक नियम तथा विधान अछि, अतः ई ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान अछि। जतय ॠग्वेदक रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्रमे भेल छल तँ यजुर्वेदक रचना कुरुक्षेत्रक प्रदेशमे भेल अछि।[२] वैदिक सनातन वर्णाश्रमधर्मीसभ वेदसभक रचना ही नै मानैत अछि | ओ सभ वेदसभक अनादि अपौरुषेय दिव्यवाणी मानैत अछि जे साक्षात् विराटपुरुषसँ प्रकट भेल अछि | सृष्टिक आदिमे परमात्मासँ ब्रह्माजी प्राप्त केलक आ बादमे ब्रह्मासँ अनुशासित मन्त्रद्रष्टा ऋषिसभक सेहो साक्षात्कार करैल पहुँचल | पाश्चात्य दृष्टि भेल आधुनिक विद्वानसभक मतानुसार एकर रचनाकाल १४०० सँ १००० ई.पू. मानल जाइत् अछि। यजुर्वेदक संहितासभ लगभग अन्तमे रचल गेल संहितासभ छी, जे ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दि सँ प्रथम सहस्राब्दीक आरम्भिक शताब्दीसभमे लिखल गेल अछि ।[१] ई ग्रन्थद्वारा आर्यसभक सामाजिक तथा धार्मिक जीवनसँ पूर्ण रूपमे असर पडल देखल गेल अछि । ओ बखत कऽ वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रमक झाँकी सेहो एहिमे अछि। यजुर्वेद संहितामे वैदिक कालक धर्मक कर्मकाण्ड आयोजनक साथे यज्ञ करै के निम्ति मन्त्रसभक संग्रह अछि। यजुर्वेदक दुई शाखासभ छल : दक्षिण भारतमे प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद आ उत्तर भारतमे प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा । एहीमे कर्मकाण्डक बहुतरास यज्ञसभक विवरण अछि-अग्निहोत्र,अश्वमेध, वाजपेय,सोमयज्ञ, राजसूय,अग्निचयन, औद्ध्वदेहिक-:
अग्निहोत्र करै के शुक्लयजुर्वेदी यजमानक मृत्यु होएत काल अन्त्येष्टिकर्ममे लाशक पूर्वशिर करै के ,ऋग्वेदी यजमानक उत्तरशिर ,सामवेदी यजमानक दक्षिणशिर करै के वैदिक ग्रन्थ श्रौतसूत्र गृह्यसूत्रसभक व्यवस्था अछि |
ऋग्वेदक आ यजुर्वेदक लगभग ६६३ मन्त्रसभ यथावत् एके रुपक देखल गेल अछि। यजुर्वेद वेदक एकटा एहन भाग छी, जे विभाजनपूर्व आ आई सेहो जन-जीवनमे अपन स्थान उच्च रूपमे बनाक बैसल अछि । [३] संस्कारसभ एवं यज्ञीय कर्मकाण्डसभक अधिकांश मन्त्र यजुर्वेदक ही अछि।