'''श्रीमद्भगवद्गीता''' क पृष्ठभूमि [[महाभारत]] का युद्ध छी । जिसजहिमे प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपनेअपन जीवनजीवनक कसमस्या समस्याओं मेंम उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ जाता छी औरआर उनकर उसक पश्चात जीवन क समरांगण सेस पलायन करनेकरैत काक मन बना लेतालेत छी उसीवही प्रकार [[अर्जुन]] जोजे [[महाभारत]] काक महानायक छी अपनेअपन सामनेसामन आनेआवे वालीवाला समस्याओंसमस्याक से स भयभीत करभक [[जीवन]] औरआर क्षत्रिय धर्म सेस निराश गआरहोएत छी , अर्जुन क तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय क स्थिति में आर त हताश जाएत अछिऔरअछि आर फिरफेर अपनीअपन समस्याओंसमस्यास से उद्विग्न कर कर्तव्य विमुख जाएत अछि। भारत वर्ष क ऋषियों ने गहन विचार क पश्चात जिसजे ज्ञान कोक आत्मसात किआरकि उसेआर वो उन्होंने वेदोंवेद काक नाम दिआर।देने छेलाह । इन्हींयही वेदों काक अंतिम भाग [[उपनिषद]] कहलाताकह ल छी । मानव जीवन क विशेषता मानव कोक प्राप्त बौद्धिक शक्ति छी और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव क बौद्धिकता क उच्चतम अवस्था त छी ही, अपितु बुद्धि क सीमाओं क परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता छी उसक एक झलक भी दिखा देता छी । उसी औपनिषदीय ज्ञान को महर्षि [[वेदव्यास]] ने सामान्य जनों क लेल [[गीता]] में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किआर छी । वेदव्यास क महानता ही छी , जो कि ११ उपनिषदों क ज्ञान को एक पुस्तक में बाँध सक और मानवता को एक आसान युक्ति से पमात्म ज्ञान का दर्शन करा सक।