"ओउ्म्" के अवतरणसभमे अन्तर

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पङ्क्त्ति १५:
ब्रह्मप्राप्तिके लेल निर्दिष्ट विभिन्न साधनसभमें प्रणवोपासना मुख्य छैक। [[मुण्डकोपनिषद्]]मे लिखल अछि:
 
: ''प्रणवो धनु:शरोह्यात्मा ब्रह्मतल्लक्ष्यमुच्यते।''
: ''अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ॥''
 
 
पङ्क्त्ति ३४:
 
== विवेचना ==
: ''तस्य वाचकः प्रणवः''
: ''ओ ईश्वरक वाचक प्रणव 'ॐ' छी '''
 
तैत्तरीयोपनषद शिक्षावल्ली अष्टमोऽनुवाकःमें ॐ कs विषयमें कहल गेल अछि
पङ्क्त्ति ५७:
अर्थातः- ॐ ही ब्रह्म छी । ॐ ही प्रत्यक्ष जगत् छी। ॐ ही एकर (जगतक) अनुकृति छी । हे आचार्य! ॐ के विषयमें आर सुनाओल जाई आचार्य सुनाबैत अछि । ॐ सं प्रारम्भ करिके साम गायक सामगान कहैत छथि । ॐ-ॐ कहैत् ही शस्त्र रूप मs मन्त्र पढ़ल जाइत अछि । ॐ सं अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रसभक उच्चारण करैत अछि । ॐ कहीक अग्निहोत्र प्रारम्भ करल जाइत अछि । अध्ययनके समय ब्राह्मण ॐ कहीकs ब्रह्म कs प्राप्त करsक बात करैत अछि । ॐक द्वारा ही ओ ब्रह्म कs प्राप्त करैत अछि ।
 
: ''ओ ओंकार आदि मैं जाना।''
: ''लिखि औ मेटें ताहि ना माना ॥''
: ''ओ ओंकार लिखे जो कोई।''
: ''सोई लिखि मेटणा न होई ॥''
 
[[गुरु नानक]] ॐ कs महत्वक प्रतिपादित करैत लिखलथि —
: ''ओम सतनाम कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्त''
: ''यानी ॐ सत्यनाम जपsवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं "अकाल-पुरुषके" सदृश भs जाइत अछि।''
 
"ॐ" ब्रह्माण्डक नाद छी एवं मनुष्यके अन्तरमें स्थित ईश्वरक प्रतीक छी ।
प्राप्ति स्थल "https://mai.wikipedia.org/wiki/ओउ्म्"