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[[File:Paag 1.jpg|thumb|मिथिलाक लाल पाग]]
पाग [[मिथिला]] में माथा पर पहिरल जाएत अछि। पाग मिथिलाके ब्राह्मण आ कर्ण–कायस्थ जातिके थिक । एकराअछि।एकरा वेद अथवा संस्कृत में "सिरवश्त्रम" कहल गेल अछि।अछि।जाहि पगडीकेर प्रयोग मुरेठा जँकामिथिलाक पागपारंपरिक सेहोसभ्यता एकगोटाके पहिरनप्रदर्शित अछिकरेत अछि।इ पगडीसम्मान आउर मुरेठागर्वक जँकाप्रतीक पागक प्र्रचलन सब जातिमे नहि अछि । ब्राह्मणवादी सभ मिथिला क्षेत्रमे पाग अभियान चलौने छथि । सोलकन, पिछडावर्ग, दलित आ दमित, शिल्पी समुदाय सभ पागके विरोध कए रहला अछि ।अछि।  
बहुत रासि वर्ष पहिले एकरा पत्ता आदि सँ बनाउल जाएत छलै,परन्तु अखन कालांतर में एकरा कपडा सँ बनाएल जाएत छै। विशेषछै।विशेष रुप सँ इ लाल,पियड़ अथवा उजर रंगक भैंटेत अछि।
ब्राह्मणवादी सभ अपन पागक संस्कृति बचावक लेल विभिन्न अभियान चलेल जा रहल अछि।<blockquote>
==इतिहास==
= पाग कक्कर ? =
</blockquote>पाग लगेबाक प्रचलन कहियासँ शुरु भेल अछि, एकर ठोस आ तथ्यपरक इतिहास नहि भेटयैक छहि । ब्राह्मणवादी सभ मनोमानी ढंकसँ एकडा अंगिकार केलथि अछि , आ आन जातिके माथ पर चढा दैत अछि । ब्राह्मणवादीक नेतृत्वमे मिथिला क्षेत्रमे  भेल वा आयोजना कयल गेल कुनू भी कार्यक्रममें पागक प्रचार सभसँ बेसी होइत अछि । मिथिला क्षेत्रक आन लोकके एहि तरहे काज पसन्द नहि छयैक । तहियो वषौंसँ ई अभियान जबर्जस्ती मिथिलामें जारी अछि । आब त अहि बहाने सोलकन, पिछडावर्ग, दलित सभ मैथिली भाषासँ सेहो कन्छियाही काँट लगत छहि । ओ सभ कहैय लगला अछि, ‘जाधरि पाग आ ब्राह्मण आगा, ताधरि मैथिली पाछा ।’ एकर अन्त्य होमाक चाहीं, नहि त मैथिली भाषा ब्राह्मणमे मात्र सीमित होमाक खतरा अछि ।
 
मैथिली भाषी क्षेत्रमें ‘पाग’ पर बषौंसं विवाद जारी अछि । हरेक मैथिली गतिविधि आ कार्यक्रममे ई बहस आ विवादके विषय बनैत आइब रहल अछि ।  मुद्दा तइयो किछू जाति विशेषक लोक सभ एकर समाधान दिशि कम आ प्रचार दिशि बेसी धडपडीमे रहैत छइथ । मैथिली आ मिथिला पर ब्राह्मणवाद हाबी भेलाक किटानी आरोपक बाबजूद अहि तरहे क्रियाकलाप होनाइ अहितकर अइछ । अहि विषय पर बारम्बार आबाज उठाओल जा रहल अइछ । मुद्दा ओहि आबाजके सुनूबाक प्रयास धरि नहि होएत अछि । एकडा एकगोटा दूर्भाग्यपूर्ण आवस्था कहि सकैत छी । मैथिली आ मिथिला ब्राह्मणवादसं मुक्त नहि होएत त एकड भविष्य अन्धकार अइछ । हाँ किछू गोटाके अहि नाम पर वर्षौधरि चाँदि कटैया जारी रहि सकैत अछि, मुदा मैथिली हक्कन कानति । जहाधरि पागक गप्प अइछ, पाग विशुद्ध अगाडा जाति (ब्राह्मण आ कर्ण–कायस्थ) के थिक । ई एकगोटा ध्रुवसत्य सेहो थिक । मुदा एकर अर्थ ई किमार्थ नहि जे एकडा विरोध कयैल जाई । कुनू जातिक पहिरवाक विरोध अनुचित अछि, मुदा एकडा समुच्चा मैथिली भाषीक शीरक शान कहि देनाई अतिबादी आ विस्तावादी सोचके आलाबा अउर किछु नहि भए सकैत अछि । अहि तरहे सोचके विरोध निश्चित अछि, होएत । पागके शुभाराम्भ कालक तथ्यपरक प्रमाण सभके अभाव अछि । जे किछु अइछ सबटा एकमुडिया आ एकभगहा सब भेटैत अछि । मुदा एकर बाबजूद पागक विषयमे जे यथार्थ आ सत्य अइछ अखनोधरि ककरो सँ चोरायल नहि अछि । ‘पाग कक्कर ?’ शीर्षक मे भेल अध्ययनके क्रममे निचा देल गेल सामग्री सब मिथिलामे पाग ब्राह्मण , कर्ण–कायस्थके अलाबा दुसरके नहि थिकैह ।
 
 
 
एकर पुष्टि भारतक चर्चित पत्रिका जनसत्ता सेहो कए रहल अछि । पत्रिकाके ५ नोभेम्बर २०१५ के अंकले देवशंकल नविन लिखने छइथ:–<blockquote>'''.‘...यस पूरी मिथिला का सांस्कृतिक प्रतीक नहीं है । ‘पाग’ की प्रथा मिथिला मे सिर्फ ब्राह्मण और कायस्थ में हैं ।’'''</blockquote>पागप्रति बहुत राश गइर ब्राह्मण–कायस्थके आक्रोश देखबामे अबैत अछि । एकर विपक्षमें रहनिहार सब विभिन्न मंच आ अपन आलेख मार्फत् अपन मोनक भडास निकालैत रहैत छइथ । अहिमे नेपालक मैथिली भाषी बुद्धिजीवि सर्वश्री प्रो. परमेश्वर कापडि विदेह सदेहमे ‘विदेह मैथिली प्रबन्ध–निबन्ध–समालोचना’ शीर्षकमे लिखने छइथ –<blockquote>'''‘.....आई किछु लोक कत्तह कहाँ के धोती कुर्ता आ बभनौटी पागकें मैथिली संस्कृतिक पहचान सङे जोडैके घृष्टता कए रहलाह अछि  ..समाजमे बाभन छोडि आन केओ पाग पहिरते नै छै । जे जाति विशेषसं आबद्ध अछि से पाग जँ मैथिली संस्कृतिक प्रतिक बनत तँ नै लगैय जे ई बात फेरु हमरे बाभनक थीक से भँ जएतै ? ’'''</blockquote>कापडि पागके बभनौटि संस्कृतिक प्रतिक कहैत समुच्चा मिथिलाके पहचान सङे जोडैके धृष्टता नहि करबाक चेतावनी दैत छइथ । पागके बारेमे सुभद्र झा सेहो अपन पोथी नातिक पत्रक उत्तरले एकरा आन जातिके पहिरबा मानैक लेल तयार नहि छइथ । ओ '''‘ब्राह्मण आ कायस्थक पाग’''' पहिरब बात उल्लेख कयने अछि ।
 
पागके ब्राह्मण आ कर्ण–कायस्थके आलाबा दुसरके नहि होबाक बात मैथिली साहित्यकार प्रफुल्ल कुमार सिंह सेहो जोड दए के कहने छइथ । भर्जिनिया विश्वविद्यालयक डिजिटलाइज संस्करणमे सिंह ‘सुनसरी : अंकालिका कथा–रिपोर्ट का पहला संकलन’ शीर्षकमे लिखने छइथ :-<blockquote>'''‘... पाग की तो बात ही छोडो । थारु पाग पेन्हता ही नहीं । मैथिल बाम्हन पेन्हता हैं । सरियो न तो मैथिल है और न तो बाम्हन ही ।'''  </blockquote>पाग सोलकन आ पिछडा जातिके पहिरन नही होबाक बात इतिहासकार उपेन्द्र ठाकुर सेहो कयने छइथ । ओ त ब्राह्मण, कर्ण–कायस्थके विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान आ परम्परागत क्रियाकलापमे पागक प्रयोग होइत बात लिखने छइथ । ‘मिथिला चित्रकला व शिल्पकला’ पोथीमे ठाकुर लिखने अछि –<blockquote>'''‘मैथिल ब्राह्मण तथा कायस्थ परिवारमे यज्ञोपवीत संस्कारक हेतु पवित्र सूच(जनेउ अथवा यज्ञोपवीत).. मिथिलाक विशेष शिर–त्राण, जे ‘पाग’ क नामसं प्रसिद्ध अछि ...।’'''</blockquote>अहि तरहे पुष्टि नवभारत टाइम्स सेहो कएने छयैक । पत्रिकाक अनलाइन संस्करणके ४ जनवरी २०२० को अंकमे अंकित ओझा द्वारा संपादनमे प्रकाशित समाचारमे ‘पाग लगाने की प्रथा मिथिला के ब्राह्मणों और कायस्थों में ही है...’ उल्लेख अछि । तहिना बिएनएन न्यूजमे विकास झाके बाइलाईनमे छप्पल समाचारमा समग्र मिथिलाके पहिरबा नहि होमाक तथ्य उल्लेख अइछ । पत्रिकाक अनलाईन संस्करणमे लिखल अछि–<blockquote>'''‘....पाग बिहार के मिथिला क्षेत्र और नेपाल के तराई इलाकों में मैथिली भाषी ब्राह्मण व कर्ण कायस्थ जातियों मे अमूमन मांगलिक अवसरों पर पहनने की परंपरा रही हैं ।’'''</blockquote>भारतीय समाचार माध्यम ‘आइबीएन७’ के न्यू दिल्लीके २०१६ के अनलाईन संस्करणमे सेहो समुच्चा मिथिलाके पहिरन नहि होमाक बात उल्लेख अछि । पत्रिकामे अहि तरह लिख अछि–<blockquote>'''‘...मिथिला में पडितों के बीच सिर पर सफेद पाग धारण करने की परम्परा हैं । ब्राह्मण और कायस्थ जातियों में मांगलिक अवसरहरुमा लाल पाग पहना जाता है । पाग की स्वीकार्यता यूँ तो दो ही जातियों में है...। ’'''</blockquote>हिन्दी न्यूजके २०१६ के सेप्टेम्बर अंकमे सेहो पाग मिथिलाके समुच्चा जातिके प्रतिनिधित्व नहि कए रहल तथ्य उजागर कएने छहि । <blockquote>'''‘...सच तो यह है कि मिथिला में सदियों बाद भी पाग की स्वीकार्यता ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ,दो ही जातियों में है । ब्राहम्णवादी संस्था मिथिलालोक फाउन्डेसन अन्य जाति के लोगों में भी इसकी स्वीकार्यता बढाने की दिशा मे प्रयासरत है ।’'''
 
'''‘..पाग विवाह, उपनयन, यज्ञ, पुजा आ अन्य धार्मिक कार्यक्रममे प्रयोग होइत अछि ’'''(टेलिग्राफ इण्डिया)</blockquote>२०१२ मार्चमे प्रकाशित विदेहके संपादकीयमे पाग पर आलोचनात्मक टिप्पणी कयल गेल अछि । मिथिलामे पाग पर जारी विवादके पत्रिका अपन सटिक टिप्पणी मार्फत् ब्राह्मणेत्तर, सोलकन, पिछडावर्ग, शिल्पी समुदायसहितके पक्ष लेबाक पुष्टि होइत छहि । संपादकीयमे लिखल अछि :<blockquote>'''....पाग मात्र ब्राह्मण आ कर्ण–कायस्थ परिवारक सकल मंगलकार्यमे पहिरल जाइत अछि । आन जातिक मध्य एकर कोनो प्रयोजन वा परंपरा नै । तखन मिथिलाक सभटा साहित्यक समारोहमे पाग पहिरेबाक प्रथाकें की मानल जाए ? चाटुकार ब्राह्मण साहित्यकार ऐ प्रथा द्वारा की प्रमाणित करबए चाहै छथि  जे मैथिली मात्र ब्राह्मणेटा केर भाषा थिक । ’'''</blockquote>डिजिटल पत्रिका विदेहके  समानान्तर परम्पराक विद्यापति आ पाग विदेह सदेह के २०१२ के अंक ११ मे महाकवि विद्यापतिके पाग लगाके ब्राह्मण बना देनाइ कार्य के खुब आलोचना कयल गेल अछि। सहि आ यथार्थ चित्रण पाग पर भेल अछि -<blockquote>'''‘मौर कोढिलाक बनैत अछि आ पागसं फराक अछि । कर्ण कायस्थमे सेहो सिद्धान्त कुमरम आदिमे मात्र पाग पहीरि कँ विध होइत अछि ,ओहो सभ बियाह कर पाग नै मौरि पहीरि क जाइ छथि । पूर्णियांक ब्राह्मणमे नव–विवाहिता बरसाइते मौर पहीरि क वटबृक्ष धरि जाइ छथि । पाग मात्र आ मा मैथिल ब्राह्मणक बियाहक विध–बाधक प्रतीक अछि । विद्यापतिक संस्कृत ग्रन्थमे ठक्कुर विद्यापति कृत्ता लिखल अछि आ ओ विद्यापति ब्राह्मण छथि ।....फेर अनचोक्के पाग पहिरा क (मिथिला सांस्कृतिक परिषद ई संस्था भारतक स्वतन्त्रताक बाद विद्यापतिकें पाग पहिरा क हुनका ब्राह्मण घोषित करबाक कुकृत्य केलक ) विद्यापति (मैथिल बला, संस्कृत बला नै) कें हम्मर विद्यापति ब्राह्मण वर्ग द्वारा बना लेल गेल ।...’'''</blockquote>
 
==अभियान==
मिथिला क्षेत्रमे ब्राह्मण बाहेक आन जाति सभके विश्वासमे नहि लए के पागक अभियान चलाओल गेल अछि । ताहिसँ अहि अभियान पर बहुत रास लोकनिके आस्था आ विश्वास नहि छहि । मुदा पागके सरकारी मान्यता भेटलैए । डाक टिकट जारी आ मैकमिलन डिक्शनरीमे पाग शब्दक समावेश भेल अछि । ऐतक पैघ उपलब्धिके बाबजूद आन ब्राह्मण इत्तरमे कुनू उत्साह आ खुशियाली नहि देखल गेल अछि । अखनों पागप्रति ९८ फिसदी जनताक आत्मियता नहि देखल गेल अछि ।
 
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==एकरो देखु==
प्राप्ति स्थल "https://mai.wikipedia.org/wiki/पाग"