"आयुर्वेद" के अवतरणसभमे अन्तर
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पङ्क्त्ति ३३:
५. कौमारभृत्य- शुक्र आ शोणितक शुद्धता, तिनकर दोष एवं निवारणक उपाय, गर्भाधान, गर्भरक्षा, गर्भिणी, सूतिका एवं शिशुक परिचर्या, प्रसवपछा सूतिकक आरोग्यको रक्षण, बालकक पोषण, स्तन्यपान आदि बालकक स्वास्थ्यरक्षामे सहायक उपायसभक वर्णन तथा बालग्रहादिक कारण बालकसभके भेल रोगसभक शानितो उपायबारे उपदेश दऽ तन्त्रके कौमारभृत्यतन्त्र कहैत अछि।
६. अगदतन्त्र- सर्प, कीट, लूता, माकुरा, विच्छी, मुसा आदि जीवसभक दंशसँ उत्पन्न विष, स्वाभाविक, संयोगज आ गर विषक लक्षण, तेकर निवारण करै विधिक उपदेश दऽ तन्त्रके अगदतन्त्र कहैत अछि।
==सन्दर्भ सामग्रीसभ==
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