एकलव्य महाभारतक एक पात्र छी। ओ हिरण्य धनु नामक निषादक पुत्र छल।[१] एकलव्य अप्रतिम लगनक सङ्ग स्वयम् सीखल धनुर्विद्या आ गुरुभक्तिक लेल जानल जाएत अछि। पिताक मृत्यु भेलाक बाद ओ श्रृङ्गबेर राज्यक शासक बनल। अमात्य परिषदक मन्त्रणासँ ओ नै मात्र अपन राज्यक सञ्चालन केनए छल अपितु निषाद भीलक एक सशक्त सेना आ नौसेना गठित करि अपन राज्यक सीमा विस्तार केनए छल।

फाइल:Ekalavya's Guru Dakshina.jpg
गुरु द्रोणकेँ गुरुदक्षिणामे अपन औंठा भेंट करैत एकलव्य।

महाभारतमे वर्णित कथाके अनुसार एकलव्य धनुर्विद्या सीखैके उद्देश्यसँ द्रोणाचार्यके आश्रममे आएल मुद्दा निषादपुत्र होए के कारण द्रोणाचार्य उनका अपन शिष्य बनावै लेल स्वीकार नै केलक। निराश भ , एकलव्य वनमे चलि गेल। ओ द्रोणाचार्यक एक मूर्ति बनौलक आ ओ मूर्तिक गुरु मानि के धनुर्विद्याक अभ्यास करै लगल। एकाग्रचित्तसँ साधना करैत अल्पकालमे ही ओ धनु्र्विद्यामे अत्यन्त निपुण भ गेल। एक दिन पाण्डव तथा कौरव राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लेल ओही वनमे गेल जतय पर एकलव्य आश्रम बना के धनुर्विद्याक अभ्यास करि रहल छल। राजकुमारसभक कुत्ता भटैक के एकलव्य के आश्रममे पहुँच गेल। एकलव्य के देख ओ भौंके लगल। कुत्ताके भौंके सँ एकलव्यक साधनामे बाधा पडि रहल छल अतः ओ अपन वाणसँ कुत्ताके मुँह बन्द करि देलक।


सन्दर्भ सामग्रीसभ सम्पादन करी

  1. "महाभारत के ओ १० पात्र जिनका जनैत अछी बहुत कम लोग!"। दैनिक भास्कर। २७ दिसम्बर २०१३। मूलसँ 2013-12-28 कऽ सङ्ग्रहित। अन्तिम पहुँच 2017-11-05 {{cite web}}: Unknown parameter |dead-url= ignored (|url-status= suggested) (help)

बाह्य जडीसभ सम्पादन करी

एहो सभ देखी सम्पादन करी