भरदुतिया
भाई-बहिनक स्नेह, प्रेम, सुभाशीष आ मधुरतासँ भरल ई महान पावनि थिक भरदुतिया । भाई-बहिनक प्रेमक प्रतीक भरदुतिया (भ्रातृ द्वितीया) पावनि दीवालीक दू दिनक बाद, कार्तिक मासक शुक्ल पक्ष केर द्वितीया तिथिकेँ मनाओल जाईत अछि । एहि पावनिमे बहिन भाईकेँ निमन्त्रण दऽ कऽ अप्पन घर बजावैत छथि । अरिपन बना कऽ पिड़ही पर भाईकेँ बैसायल जाईत अछि । ललाठ पर पिठार आ सिन्दुरक ठोप कऽ, पान सुपारी भाईकेँ हाथमे दऽ कऽ बहिन एही पन्तीक उच्चारण करै छथि “गङ्गा नोतै छथि यमुनाके, हम नोतै छी अप्पन भाएकेँ! जहिना जहिना गङ्गा-यमुनाकेँ धार बढ़ए तहिना हमर भाए सभहक अरुदा बढ़य” आ हुनक दीर्घायु जीवनक कामना यमराजसँ करैत छथि, फेर भाईकेँ मुंह मिठ कएल जाईत अछि । भाई अप्पन सामर्थ्यक अनुसार बहिनकेँ उपहार प्रदान करैत छथि । कहल जाएत अछि जे यमराजक बहिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया कऽ हुनका निमन्त्रण देनए छलीह । ताहिसँ यमराज प्रसन्न भेल छलाह । तहिआसँ ई प्रथा चलि रहल अछि । मिथिलामे ई पावनि घरे-घर उल्लासक सङ्ग मनाओल जाईत अछि ।