अशोक स्तम्भ भारतीय उपमहाद्वीप भरिमे निर्मित स्तम्भसभक एक श्रृङ्खला छी जे ईसा पूर्व तेसर शताब्दीमे मौर्य सम्राट अशोकद्वारा बनाएल गेल छल । मूल रूपसँ, ओहि समयमे बहुतेक स्तम्भ बनाएल गेल छल मुदा मुसलमान आक्रमणकारीके लक्षित रहला कारण वर्तमानमे मात्र उन्नाइस शिलालेख मात्र बचल अछि आ ओहिमे अशोकक सिंह राजधानी भेल ६ गो स्तम्भ मात्र बचल अछि । बहुतेक स्तम्भसभ तुटल अवास्थामे संरक्षित कएल गेल अछि ।[] अशोक स्तम्भ औसतन १२ सँ १५ मी (४० सँ ५० फिट) उँच अछि, आ तौलमे ५० टनक रहल अछि । कखेनै कखेनौ ई स्तम्भ स्थापित करिक लेल सौ माइलसँ बेसी घसिट कऽ लऽ जाइल जाइत छल ।[][]

वैशालीमे रहल अशोक स्तम्भ
अशोक स्तम्भक स्थान[]
दिल्लीमे स्थानान्तरण कएल अशोक स्तम्भ

पृष्ठभूमि

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सम्राट अशोकक धार्मिक प्रचारसँ भारतमे कलाके बहुतेक प्रोत्साहन मिलल । अपन धर्मलेखसभक अङ्कनक लेल ओ ब्राह्मीखरोष्ठी दुई लिपिसभक उपयोग केनए छल आ सम्पूर्ण देशमे व्यापक रूपसँ लेखनकलाक प्रचार भेल । धार्मिक स्थापना आ मूर्तिकलाक अभूतपर्वू विकास अशोकक समयमे भेल । परम्पराक अनुसार अशोक ओहि तीन वर्षक अन्तर्गत ८४,००० स्तूपसभक निर्माण करौलक ।[] एहिमे सँ ऋषिपत्तन (सारनाथ) मे ओकरद्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूपक भग्नावशेष अखनो द्रष्टव्य अछि ।[]

एहि प्रकार ओ अगणित चैत्यसभ आ विहारसभक निर्माण करौलक । अशोक देशक विभन्न भागसभमे प्रमुख राजपथसभ आ मार्गसभ पर धर्मस्तम्भ स्थापित केलक । अपन मूर्तिकलाक कारण ई स्तम्भ सबसँ अधिक प्रसिद्ध अछि । स्तम्भ निर्माणक कला पुष्ट नियोजन, सूक्ष्म अनुपात, सन्तुलित कल्पना, निश्चित उद्देश्यक सफलता, सौन्दर्यशास्त्रीय उच्चता तथा धार्मिक प्रतीकत्वक लेल अशोकक समय अपन चरम सीमा पर पहुँचि चुकल छल । ई स्तम्भसभक उपयोग स्थापत्यात्मक मात्र नै भऽ स्मारकात्मक सेहो छल ।[]

सारनाथक स्तम्भ

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सारनाथक स्तम्भ धर्मचक्र प्रवर्तनक घटनाके स्मारक छल आ धर्मसङ्घक अक्षुण्णता बनाए राखैक लेल एकर स्थापना भेल छल । ई चुनारक बलुआ पत्थरक लगभग ४५ फिट लम्बा प्रस्तरखण्डक बनल छल । धरतीमे गड़ल आधारक छोडि एकर दण्ड गोलाकार अछि, जे शीर्ष भाग आ क्रमश: पातर होइत जाइत अछि । दण्डक उपर एकर कण्ठ आ कण्ठक उपर शीर्ष अछि । कण्ठक निचा प्रलम्बित दलोन्वाला उलटा कमल अछि । गोलाकार कण्ठ चक्रसँ चारि भागमे विभक्त अछि । ओहिमे क्रमश: हाथी, घोड़ा, बैल तथा सिंहक सजीव प्रतिकृतिसभ उभरल अछि । कण्ठक उपर शीर्षमे चारि टा सिंहमूर्तिसभ अछि जे पृष्ठत: एक दोसरसँ जुड़ल अछि । ई चारू के बीचमे एकटा छोट दण्ड छल जे धर्मचक्रक धारण करैत छल । अपन मूर्तन आ चमकक दृष्टि ई स्तम्भ अद्भुत अछि । ई समय स्तम्भक निचला भाग अपन मूल स्थानमे अछि । शेष सङ्ग्रहालयमे राखल गेल अछि । धर्मचक्रक मात्र किछ टुकड़ा उपलब्ध भेल अछि । चक्ररहित सिंह शीर्ष आई भारत गणतन्त्रक राज्य चिह्न छी । चक्र वैदिक ऋतसँ विकसित धर्मक कल्पनाक प्रतीक अछि, जे सम्पूर्ण आकाशमे गतिशील रहैत अछि ।

सन्दर्भ सामग्रीसभ

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  1. Reference: "India: The Ancient Past" p.113, Burjor Avari, Routledge
  2. Harry Falk, Ashokan Sites and Artefacts: A Source-Book with Bibliography (Mainz am Rhein, 2006).
  3. http://www.cs.colostate.edu/~malaiya/ashoka.html
  4. Thapar, Romila (2001). New Delhi: Oxford University Press, pp.267-70
  5. Companion, 430
  6. Harle, 22
  7. Harle, 22, 24, quoted in turn

बाह्य जडीसभ

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एहो सभ देखी

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